Wednesday, February 16, 2022

बावलिया बाबा : जिनके आशीर्वाद से बिड़ला बने देश के बड़े उद्योगपति, जानिए

 

बावलिया बाबा: जिनके आशीर्वाद से बिड़ला बने देश के बड़े उद्योगपति, जानिए पूरी कहानी 👇🏻👇🏻



बिड़ला परिवार के बारे में तो शायद सभी जानते होंगे। देश के बड़े उद्योगपतियों में बिड़ला परिवार का नाम देश की आजादी के बाद से आज तक सुनने को मिलता है। लेकिन क्या आप जानते है बिड़ला परिवार की तरक्की के पीछे एक संत के दिए वरदान को माना जाता है। चलिए आज हम आपको बताएंगे उस संत (Bawaliya Baba ki Kahani) के बारें में जिसे दुनियाभर में बावलिया बाबा के नाम से पहचान मिली।


बाबा को लोग कहते थे पागल :

राजस्थान के झुंझुनूं जिले के चिड़ावा कस्बे को शिव नगरी के नाम से पहचान भी इन्हीं बावलिया बाबा के कारण मिली। चिड़ावा में बावलिया बाबा का नाम परमहंस पंडित गणेश नारायण है। लेकिन एक घटना के कारण इनको भक्त बावलिया बाबा के रूप में मानने लगे। अब हम आपको बताते है साधारण से बिड़ला परिवार के बड़े उद्योगपति बनने की कहानी के बारे मे,

परमहंस पंडित गणेश नारायण का जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बचपन से ही पंडित गणेश नारायण जी का काफी तेज दिमाग था। उन्होंने छोटी सी उम्र में वेदों का ज्ञान और ज्योतिष विद्या सिख ली। नवरात्रि में एक बार मां दुर्गा की पूजा करते समय उनकी पूजा में व्यवधान पड़ गया। इसके बाद उन्होंने पहाड़ियों में काफी समय तक मां दुर्गा की उपासना की। इसके बाद उन्होंने चिड़ावा को अपना घर बना लिया। 

इनके आशीर्वाद से बिड़ला बने देश के बड़े उद्योगपति:

उनके मुख से निकली हर बात सत्य होने लगी। वो किसी भी घटना की पहले ही घोषणा कर देते थे। जब उनकी हर बात सत्य होने लगी तो लोगों ने उनको बावलिया बाबा की उपाधि दी। क्योंकि उन्होंने अपना वेश बिल्कुल ही ऐसा बना लिया था। उनकी ख्याति सुनकर पिलानी के सेठ जुगल किशोर बिड़ला रोजाना पिलानी से चिड़ावा उनके लिए खाना लेकर जाते थे।

एक बार बावलिया बाबा ने बिड़ला से कहा कि तुम अब व्यापार करने जाओ तुम्हारा समय बहुत अच्छा है। बाबा का आदेश पाकर बिड़ला उसी समय अपने व्यापार करने के लिए निकल पड़े। लेकिन रास्ते में उनको सांप दिखा तो वापस लौट आए। आकर सारी बात बावलिया बाबा को बताई। बावलिया बाबा ने कहा अगर तुम चले जाते तो चक्रवर्ती सम्राट बन जाते है। लेकिन अभी भी समय है निकल जाओ दुनिया आने वाले समय में तुम्हारा गुणगान करेंगे।


तब बिड़ला जी निकल गए। तभी से लेकर आज तक बिड़ला परिवार का नाम देश-दुनिया में छा गया। देशभर में बावलिया बाबा के करोड़ों भक्त है। राजस्थान के साथ गुजरात के सूरत और अहमदाबाद में भी बावलिया बाबा के लाखों भक्त है। 


Tuesday, February 19, 2019

श्री खाटू श्याम बाबा कौन हैं, खाटू श्याम बाबा की कहानी , जरूर देखें ।

राजस्थान के सीकर जिले में श्री खाटू श्याम जी का सुप्रसिद्ध मंदिर है. वैसे तो खाटू श्याम बाबाके भक्तों की कोई गिनती नहीं लेकिन इनमें खासकर वैश्य, मारवाड़ी जैसे व्यवसायी वर्ग अधिक संख्या में है। 

कौन है खाटू श्याम बाबा ?

खाटू श्याम जी का असली नाम बर्बरीक है। महाभारत की एक कहानी के अनुसार बर्बरीक का सिर राजस्थान प्रदेश के खाटू नगर में दफना दिया था, इसीलिए बर्बरीक जी का नाम खाटू श्याम बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुआ. वर्तमान में खाटूनगर सीकर जिले के नाम से जाना जाता है. खाटू श्याम बाबा जी कलियुग में श्री कृष्ण भगवान के अवतार के रूप में माने जाते हैं । 




खाटू श्याम बाबा की कहानी जरूर देखें ।।

श्याम बाबा घटोत्कच और नागकन्या नाग कन्या मौरवी के पुत्र हैं. पांचों पांडवों में सर्वाधिक बलशाली भीम और उनकी पत्नी हिडिम्बा बर्बरीक के दादा दादी थे. कहा जाता है कि जन्म के समय बर्बरीक के बाल बब्बर शेर के समान थे।

बर्बरीक का नाम श्याम बाबा कैसे हुआ ।।

बर्बरीक बचपन में एक वीर और तेजस्वी बालक थे. बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण और अपनी माँ मौरवी से युद्धकला, कौशल सीखकर निपुणता प्राप्त कर ली थी. बर्बरीक ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी, जिसके आशीर्वादस्वरुप भगवान ने शिव ने बर्बरीक को 3 चमत्कारी बाण प्रदान किए, इसी कारणवश बर्बरीक का नाम तीन बाणधारी के रूप में भी प्रसिद्ध है. भगवान अग्निदेव ने बर्बरीक को एक दिव्य धनुष दिया था, जिससे वो तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करने में समर्थ थे ।
जब कौरवों-पांडवों का युद्ध होने का सूचना बर्बरीक को मिली तो उन्होंने भी युद्ध में भाग लेने का निर्णय लिया. बर्बरीक अपनी माँ का आशीर्वाद लिए और उन्हें हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन देकर निकल पड़े. इसी वचन के कारण हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा यह बात प्रसिद्ध हुई ।

जब बर्बरीक जा रहे थे तो उन्हें मार्ग में एक ब्राह्मण मिला. यह ब्राह्मण कोई और नहीं, भगवान श्री कृष्ण  थे जोकि बर्बरीक की परीक्षा लेना चाहते थे. ब्राह्मण बने श्री कृष्ण ने बर्बरीक से प्रश्न किया कि वो मात्र 3 बाण लेकर लड़ने को जा रहा है ? मात्र 3 बाण से कोई युद्ध कैसे लड़ सकता है. बर्बरीक ने कहा कि उनका एक ही बाण शत्रु सेना को समाप्त करने में सक्षम है और इसके बाद भी वह तीर नष्ट न होकर वापस उनके तरकश में आ जायेगा. अतः अगर तीनों तीर के उपयोग से तो सम्पूर्ण जगत का विनाश किया जा सकता है.

ब्राह्मण ने बर्बरीक (Barbarik) से एक पीपल के वृक्ष की ओर इशारा करके कहा कि वो एक बाण से पेड़ के सारे पत्तों को भेदकर दिखाए. बर्बरीक ने भगवान का ध्यान कर एक बाण छोड़ दिया. उस बाण ने पीपल के सारे पत्तों को छेद दिया और उसके बाद बाण ब्राह्मण बने कृष्ण के पैर के चारों तरफ घूमने लगा. असल में कृष्ण ने एक पत्ता अपने पैर के नीचे छिपा दिया था. बर्बरीक समझ गये कि तीर उसी पत्ते को भेदने के लिए ब्राह्मण के पैर के चक्कर लगा रहा है. बर्बरीक बोले – हे ब्राह्मण अपना पैर हटा लो, नहीं तो ये आपके पैर को वेध देगा ।


श्री कृष्ण बर्बरीक के पराक्रम से प्रसन्न हुए. उन्होंने पूंछा कि बर्बरीक किस पक्ष की तरफ से युद्ध करेंगे. बर्बरीक बोले कि उन्होंने लड़ने के लिए कोई पक्ष निर्धारित किया है, वो तो बस अपने वचन अनुसार हारे हुए पक्ष की ओर से लड़ेंगे. श्री कृष्ण ये सुनकर विचारमग्न हो गये क्योकि बर्बरीक के इस वचन के बारे में कौरव जानते थे. कौरवों ने योजना बनाई थी कि युद्ध के पहले दिन वो कम सेना के साथ युद्ध करेंगे. इससे कौरव युद्ध में हराने लगेंगे, जिसके कारण बर्बरीक कौरवों की तरफ से लड़ने आ जायेंगे. अगर बर्बरीक कौरवों की तरफ से लड़ेंगे तो उनके चमत्कारी बाण पांडवों का नाश कर देंगे,
कौरवों की योजना विफल करने के लिए ब्राह्मण बने कृष्ण ने बर्बरीक से एक दान देने का वचन माँगा. बर्बरीक ने दान देने का वचन दे दिया. अब ब्राह्मण ने बर्बरीक से कहा कि उसे दान में बर्बरीक का सिर चाहिए. इस अनोखे दान की मांग सुनकर बर्बरीक आश्चर्यचकित हुए और समझ गये कि यह ब्राह्मण कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है. बर्बरीक ने प्रार्थना कि वो दिए गये वचन अनुसार अपने शीश का दान अवश्य करेंगे, लेकिन पहले ब्राह्मणदेव अपने वास्तविक रूप में प्रकट हों ।
भगवान कृष्ण अपने असली रूप में प्रकट हुए. बर्बरीक बोले कि हे देव मैं अपना शीश देने के लिए बचनबद्ध हूँ लेकिन मेरी युद्ध अपनी आँखों से देखने की इच्छा है. श्री कृष्ण बर्बरीक ने बर्बरीक की वचनबद्धता से प्रसन्न होकर उसकी इच्छा पूरी करने का आशीर्वाद दिया. बर्बरीक ने अपना शीश काटकर कृष्ण को दे दिया. श्री कृष्ण ने बर्बरीक के सिर को 14 देवियों के द्वारा अमृत से सींचकर युद्धभूमि के पास एक पहाड़ी पर स्थित कर दिया, जहाँ से बर्बरीक युद्ध का दृश्य देख सकें. इसके पश्चात कृष्ण ने बर्बरीक के धड़ का शास्त्रोक्त विधि से अंतिम संस्कार कर दिया,
महाभारत का महान युद्ध समाप्त हुआ और पांडव विजयी हुए. विजय के बाद पांडवों में यह बहस होने लगी कि इस विजय का श्रेय किस योद्धा को जाता है. श्री कृष्ण ने कहा – चूंकि बर्बरीक इस युद्ध के साक्षी रहे हैं अतः इस प्रश्न का उत्तर उन्ही से जानना चाहिए. तब परमवीर बर्बरीक ने कहा कि इस युद्ध की विजय का श्रेय एकमात्र श्री कृष्ण को जाता है, क्योकि यह सब कुछ श्री कृष्ण की उत्कृष्ट युद्धनीति के कारण ही सम्भव हुआ. विजय के पीछे सबकुछ श्री कृष्ण की ही माया थी,
बर्बरीक के इस सत्य वचन से देवताओं ने बर्बरीक पर पुष्पों की वर्षा की और उनके गुणगान गाने लगे. श्री कृष्ण वीर बर्बरीक की महानता से अति प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा – हे वीर बर्बरीक आप महान है. मेरे आशीर्वाद स्वरुप आज से आप मेरे नाम श्याम से प्रसिद्ध होओगे. कलियुग में आप कृष्णअवतार रूप में पूजे जायेंगे और अपने भक्तों के मनोरथ पूर्ण करेंगे.
भगवान श्री कृष्ण का वचन सिद्ध हुआ और आज हम देखते भी हैं कि भगवान श्री खाटू श्याम बाबा जी अपने भक्तों पर निरंतर अपनी कृपा बनाये रखते हैं. बाबा श्याम अपने वचन अनुसार हारे का सहारा बनते हैं. इसीलिए जो सारी दुनिया से हारा सताया गया होता है वो भी अगर सच्चे मन से बाबा श्याम के नामों का सच्चे मन से नाम ले और स्मरण करे तो उसका कल्याण अवश्य ही होता है। 

बोल खाटू नरेश की जय हो ।
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Thursday, December 6, 2018

गुरुवार का दिन बावलिया बाबा का दिन होता है , कैसे जरुर देखे

राजस्थान के शेखावाटी की धन्यधरा में दानवीर, कर्मवीर, उद्योगपति, संत-फकीर, देश की आन-बान और शान पर कुर्बान होने वाले जाबाज सपूतों को जन्म दिया जिन्होंने न केवल शेखावाटी बल्कि भारत का नाम विश्व में गौरवान्वित किया है! झुंझुनूं जिले के नवलगढ़ कस्बे से पन्द्रह किलोमीटर दूरी पर स्थित ‘बुगाला’ नामक गांव है जहां आज से लगभग दौ सौ बरस पहले एक दिव्य आत्मा ने इस धरा पर जन्म लिया जिनका नाम था पंडित गणेशनारायण| भारत की पवित्र धरा पर समय – समय स्वयं भगवान अवतार लिया और जगत का कल्याण किया|
  बुगाला गांव में विक्रम संवत 1903 में पौष बदी एकम (गुरुवार)के दिन इनका खंडेलवाल ब्राह्मण घनश्यामदास के घर जन्म हुआ। विद्वान पिता बालक के अलौकिक प्रभाव से आनंद से भाव-विहोर थे| बालक गणेशनारायण ने अल्पायु में ही संस्कृत, व्याकरण,ज्योतिष शास्त्र, आयुर्वेद आदि ग्रंथों में निपुणता हासिल कर ली| उनके गुरु पंडित रूदेंद्र शास्त्री बालक गणेश के कुशाग्र बुद्धि से बहुत प्रभावित हुए| वि़ सं. 1917 में मात्र चौदह वर्ष की उम्र में नवलगढ़ के चतुर्भुज की लड़की स्योनदी के साथ इनका विवाह सम्पन्न हुआ। नवलगढ़ में ही रह रहे अमीर शाहजादा केशरशाह से इन्होंने फारसी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया। संवत 1932 में इन्हें पुत्र रत्न प्राप्त हुआ| पंडित गणेशनायारण जी अपने आराध्य शिव और शक्ति के दर्शन करने को लालायित थे| पंडितजी की जीवन साधना बड़ी ही सात्विक थी, वे कहते थे शिव-शक्ति की साधना कभी भी निष्फल नहीं होती, साधक की पुकार शक्ति जरूर सुनती है, अब पंडितजी केवल शक्ति से साक्षात्कार करने का उदेद्श्य रह गया था!

बावलिया बाबा का जन्म गुरुवार 1903 मे हुआ है , इस वजह से गुरुवार का दिन बावलिया बाबा के भगतो के लिये शुभ माना जाता है !! इस पोस्ट को अपने मित्रो ऐव परिवार के लोगो मे ज्यादा से ज्यादा SHARE करे !!

Saturday, November 3, 2018

आखिर क्यो बावलिया बाबा से औरत ओर बच्चे तो इनसे बहुत डरते थे

राजस्थान के शेखावाटी की धन्यधरा में दानवीर, कर्मवीर, उद्योगपति, संत-फकीर, देश की आन-बान और शान पर कुर्बान होने वाले जाबाज सपूतों को जन्म दिया जिन्होंने न केवल शेखावाटी बल्कि भारत का नाम विश्व में गौरवान्वित किया है! झुंझुनूं जिले के नवलगढ़ कस्बे से पन्द्रह किलोमीटर दूरी पर स्थित ‘बुगाला’ नामक गांव है जहां आज से लगभग दौ सौ बरस पहले एक दिव्य आत्मा ने इस धरा पर जन्म लिया जिनका नाम था पंडित गणेशनारायण| भारत की पवित्र धरा पर समय – समय स्वयं भगवान अवतार लिया और जगत का कल्याण किया|

बुगाला गांव में विक्रम संवत 1903 में पौष बदी एकम (गुरुवार)के दिन इनका खंडेलवाल ब्राह्मण घनश्यामदास के घर जन्म हुआ। विद्वान पिता बालक के अलौकिक प्रभाव से आनंद से भाव-विहोर थे| बालक गणेशनारायण ने अल्पायु में ही संस्कृत, व्याकरण,ज्योतिष शास्त्र, आयुर्वेद आदि ग्रंथों में निपुणता हासिल कर ली| उनके गुरु पंडित रूदेंद्र शास्त्री बालक गणेश के कुशाग्र बुद्धि से बहुत प्रभावित हुए| वि़ सं. 1917 में मात्र चौदह वर्ष की उम्र में नवलगढ़ के चतुर्भुज की लड़की स्योनदी के साथ इनका विवाह सम्पन्न हुआ। नवलगढ़ में ही रह रहे अमीर शाहजादा केशरशाह से इन्होंने फारसी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया। संवत 1932 में इन्हें पुत्र रत्न प्राप्त हुआ| पंडित गणेशनायारण जी अपने आराध्य शिव और शक्ति के दर्शन करने को लालायित थे| पंडितजी की जीवन साधना बड़ी ही सात्विक थी, वे कहते थे शिव-शक्ति की साधना कभी भी निष्फल नहीं होती, साधक की पुकार शक्ति जरूर सुनती है, अब पंडितजी केवल शक्ति से साक्षात्कार करने का उदेद्श्य रह गया था!
 गणेशनारायणजी भगवती दुर्गा के परमभक्त थे तथा दुर्गामंत्र का हर वक्त जाप करते रहते थे। इनके मुंह से उस वक्त जो भी बात निकल जाती वह सत्य होती। यह चमत्कार देख कई लोग इनके परमभक्त बन गये, वहीं कई लोग इनसे डरने लगे क्योंकि ये अनिष्ट घटने वाली घटना का भी पूर्व संकेत कर देते थे, सच्चे साधक होने के उपरान्त भी दुनिया इन्हें पागल मानती थी। ये सदैव लोगों से दूर रहने का प्रयत्न करते थे।
औरत ओर बच्चे तो इनसे बहुत डरते थे क्योंकि इनकी वेशभूषा ही ऐसी थी। समाज में बहिष्कृत तथा शास्त्रों में निषिद्ध नीले रंग के वस्त्रों का ही गणेशनारायण जी प्रयोग करते थे। ये सिले हुये कपड़े नहीं पहनते थे। ये कभी श्मशान में लोट लगाते तो कभी पास के भगीनिये जोहड़े में बैठे रहते थे। भोजन करते समय कुत्ते और कौवे भी इनके साथ खाते थे। ये कुत्तों के मुंह से टपकते तथा हंडियों में पड़े पदार्थ को पहले गुदा से लगाकर बड़ी खुशी से ग्रहण करते थे। इनकी दृष्टि में किसी भी पदार्थ के प्रति घृणा नहीं थी।

  एक बार सेठ जुगलकिशोरजी बिड़ला इन्हें पिलानी ले जाने लगे मगर रास्ते में भगीनिये जोहड़े में आते ही गाड़ी रुक गयी और आगे नहीं बढ़ी। मजबूर होकर बिड़लाजी ने गणेशनारायणजी को वहीं उतार दिया। भगीनिये जोहड़े में पण्डितजी का विशेष स्नेह देखकर इनकी यादगार में बिड़ला ने यहां जोहड़ा खुदवाकर एक घाट बनवाया तथा उस घाट पर एक बहुत ऊॅंची ’’गनेशलाट’’ नाम की संवत 1959 में स्तूप बनवाई। इस स्तूप पर चढ़कर देखने से चिड़ावा व पिलानी का पूरा दृश्य साफ दिखाई देता था।
पण्डितजी अपने दर्शनार्थ आये भक्तजनों को प्रश्न करने से पूर्व ही उनके मन की बात बताकर उन्हें आश्चर्यचकित कर देते थे। इनकी भविष्यवाणियां कभी गलत नहीं हुईं और इन्होंने जिसे भी आशीर्वाद दिया वह धन्य हो गया। पिलानी निवासी सेठ जुगलकिशोर बिड़ला से परमहंस का विशेष स्नेह था तथा इनके आशीर्वाद से ही बिड़ला परिवार उद्योग, व्यापार के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित कर सका। एक बार पण्डितजी ने कहा कि जुगलकिशोर जा, कमाने निकल जा, आज तेरा शुभ दिन है।
पण्डितजी की आज्ञा मानकर सेठ कलकत्ता की ओर चल दिये। रास्ते में उसे दाहिनी तरफ फन उठाये काला सांप मिला जो शुभ शकुन था मगर सेठ उसे अपशकुन मानकर वापिस लौट आये और पण्डितजी को पूरी घटना बतायी। पण्डित जी बोले जुगलकिशोर तुम से भारी गलती हो गयी यदि चला जाता तो चक्रवर्ती सम्राट बनता। जा अब भी तू यशस्वी बनेगा। अपनी करनी बरनी बन्द मत होने देना इसे सदैव चालू रखना। बिड़ला परिवार का नाम इसी प्रकार देश के प्रमुख उद्योगपतियों में गिना गया। ऐसी चमत्कार पूर्ण बातों से परमहंस के प्रति श्रद्धालुओं की भक्ति बढ़ती गयी। इनके भक्तजन देश के सभी भागों में रहते हैं। इनके मनमौजी स्वभाव के कारण ही लोग इन्हें ”बावलिया’’ संत के नाम से भी पुकारते हैं।  
महात्मा गणेशनारायणजी ने संवत 1969 में पौष मास की नवमी को योग मार्ग द्वारा शरीर त्याग दिया। इनके अन्तिम संस्कार स्थल पर एक मन्दिर बना हुआ है जहां इनकी भव्य प्रतिमा स्थापित है तथा पास ही बिड़ला परिवार ने एक ऊॅंची स्तूप का निर्माण करवा दिया जिस पर संगमरमर की ब्रह्मा, विष्णु, महेश की मूर्तियां लगी हैं। चिड़ावा वासी गणेशनारायणजी को अपना ग्राम देवता मानते हैं। इनकी निर्वाण तिथि पर विशाल मेला लगता है जिसमें हजारों श्रद्धालु दर्शनार्थ आते हैं।


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Wednesday, September 12, 2018

ऐसी दरगाह जहाँ होती थी , शक्कर की बारिश नरहड़ दरगाह राजस्थान



नरहर ( चिड़ावा ) राजस्थान :-

राजस्थान में एक दरगाह ऐसी भी हैं जिसकी गुम्बद से शक्कर बरसती थी इसी कारण यह दरगाह शक्कर बार बाबा के नाम से भी जानी जाती हैं। शक्कर बार शाह अजमेर के सुफी संत ख्वाजा मोइनूदीन चिश्ती के समकालीन थे। तथा उन्हीं की तरह सिद्ध पुरुष थे। शक्कर बार शाह ने ख्वाजा साहब के 57 वर्ष बाद देह त्यागी थी। यहां श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व पर मेला भरता हैं। यह दरगाह है झुंझुनू जिले की पवित्र हाजीब शक्करबार शाह की दरगाह, जो कौमी एकता की जीवन्त मिसाल हैं।

इस दरगाह की सबसे बडी विशेषता हैं कि यहां सभी धर्मों के लोगों को अपनी अपनी पद्धति से पूजा अर्चना करने का अधिकार है । कौमी एकता की प्रतीक के रुप मे ही यहाँ प्राचीन काल से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रोज विशाल मेला भरता है जिसमे देश के विभिन्न हिस्सों से हिन्दुओं के साथ मुसलमान भी पूरी श्रद्धा से शामिल होते हैं। राजस्थान व हरियाणा मे तो शक्कर बार बाबा को लोक देवता के रुप मे पूजा जाता है।

 शादी, विवाह, जन्म, मरण कोई भी कार्य हो बाबा को अवश्य याद किया जाता है इस क्षेत्र के लागो की गाय भैंसों के बच्चा जनने पर उसके दूध से जमे दही का प्रसाद पहले दरगाह पर चढ़ता हैं तभी पशु का दूध घर में इस्तेमाल होता है। हाजिब शक्कर बार साहब की दरगाह के परिसर में जाल का विशाल पेड़ हैं जिस पर जायरिन अपनी मन्नत के धागे बांधते हैं। मन्नत पूरी होने पर गांवों में रातीजगा होता है जिसमें महिलाएं बाबा के बखान के लोकगीत जकड़ी गाती हैं। दरगाह में बने संदल की मिट्टी को लोग श्रद्धा से अपने साथ ले जाते हैं जिन्हे खाके शिफा कहा जाता हैं। लोगों की यह मान्यता है कि इस मिट्टी को शरीर पर मलने से पागलपन दूर हो जाता हैं। दरगाह में ऐसे दृश्य देखे जा सकते हैं। हजरत के अस्ताने के समीप एक चांदी का दीपक हर वक्त जलता रहता हैं। इस चिराग का काजल बडा चमत्कारी माना जाता है । इसे लगाने से आंखों के रोग दूर होने का विश्वास हैं।

 दरगाह के पीछे एक लम्बा चौडा तिबारा है जहां लोग सात दिन की चौकी भरकर वहीं रहते हैं नरहड़ दरगाह मे कोई सज्जादानसीन नही हैं। यहां के सभी खादिम अपना अपना फर्ज पूरा करते हैं। दरगाह मे बाबा के नाम पर प्रतिदिन बड़ी संख्या मे खत आते हैं जिनमें लोग अपनी अपनी समस्याओं का जिक्र कर मदद की अरदास करते हैं। दरगाह कमेटी के पूर्व सदर सिराजुल हसन फारुकी ने बताया कि जिस प्रकार ख्वाजा मोइनुदीन चिश्ती को ‘सूफियों का बादशाह ‘ कहा गया है। उसी प्रकार शक्कर बार शाह ‘बागड़ के धणी ‘ के नाम से प्रसिद्ध हैं। यहां के बारे में किवदंती है कि नरहड़ कभी प्राचीन जोड राजाओं की राजधानी था उस वक्त दिल्ली पर पठानों का शासन था एंव लोदी खां नामक पठान वहां का गर्वनर था। पठानो व राजपुतों के मध्य हुए युद्ध में पठान निरंतर परास्त होते गये एवं नरहड़ मे आकर उनके सैनिक व घोड़े थकते गए। एक रात दिव्यवाणी द्वारा पीर बाबा ने कहा कि तुम युद्ध कैसे जीत सकते हो। तुमने तो मेरी मजार पर अस्तबल बना रखा हैं।

उसी वक्त पठान सेना ने वहां से अस्तबल हटाया व विजय हासिल की। उसी वक्त से यहां उनका आस्ताना कायम हैं। इतना महत्तवपूर्ण स्थल होने के उपरांत भी राजस्थान वक्फ बोर्ड की उदासीनता के चलते यहां का समुचित विकाश नही हो पाया है इस कारण यहां आने वाले जायरीनो को परेशानी उठानी पडती हैं।

Saturday, September 1, 2018

बावलिया बाबा के भजन ( Bawaliya Baba Bhajan )

जय हो बावलिया बाबा


★★ बावलिया बाबा के भजन ●●



1. बावलिया बाबा भजन हे निलवस्त्र धारी योगी मैं तुम्हे रिझाने आया हूं

2. बावलिया बाबा भजन , कोई बोले जय बावलिया कोई संत महा

3. बावलिया बाबा भजन , लेकर हाथो में निशान लेकर पंडित जी का नाम

4. बावलिया बाबा का सबसे प्यारा भजन , आप जरूर सुने

5. बावलिया बाबा भजन , चिड़ावा में पंडित जी म्हरो देवरों रे

6. बावलिया बाबा भजन , हमें बावलिया बाबा का द्वारा लगें प्यारा प्यारा

7. बावलिया बाबा भजन , रात बावलियों सपने में आयो दर्शन दे गयो मैंने कह गयो ड़ड़ड़ड़




■■ बावलिया बाबा के भजन आप ऊपर दी लिंक पर क्लिक करके सुन सकते है  ◆◆




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#चिड़ावा : कल चिड़ावा बंद का आहवान , कल बंद रहेगा चिड़ावा शहर


चिड़ावा :- 

 फतेहपुर में हुए सावन के महीने में रामवंशज" महादेव के भक्तों कावड़ियों पर हुए हमले के विरोध में" ओर घटना के दस दिन बीत जाने के बाद भी टटपुँजियो दोषियों पर अभी तक प्रशासन की ओर से कोई भी कार्रवाई नहीं होने के चलते"हिन्दू संगठनों- साधु संतों और समस्त सनातनियो में प्रशासन के खिलाफ कड़ा रोष है!! 

इसी रोष के चलते हुए ही फतेहपुर सहित रामगढ़" बिसाऊ "नवलगढ़"मुकुंदगढ़" लक्ष्मणगढ़ के व्यापारियों ने अनिश्चित कालीन के लिए अपनी अपनी दुकानें बंद करने का फैसला किया है" वो भी शांतिपूर्ण तरीके से"! ओर आज से इसकी शुरुआत हो चुकी!! इन कस्बो के साथ ही" सीकर को भी कल बन्द करने का फैसला किया गया"!! 


 इस क्रम में चिड़ावा भी रविवार को बंद रहेगा" अगर कल शाम तक भी दोषियों पर कोई कार्रवाई नही होती है!! अगर कार्रवाई हो जाती है" तो बन्द वापस ले लिया जाएगा! व्यापार मंडलो के सभी अध्यक्षो ने चिड़ावा बन्द में अपनी सहमति जताई है!! इसी विषय पर आज चौरासियो के मन्दिर में सभी हिंदूवादी संगठनों (आरएसएस-एबीवीपी" विश्व हिन्दू परिषद-बजरंगदल"गौ रक्षा दल") व व्यापार मंडल के भाई बन्धुओ ने बैठक की ओर चिड़ावा बन्द को लेकर सहमति बनाते हुए रूपरेखा बनाई कि "शांतिपूर्ण तरीके से चिड़ावा बन्द करवाने को लेकर "रविवार को सड़क पर उतरेगा हिन्दू✊🚩!!


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Wednesday, August 29, 2018

रानी सती मंदिर , झुंझुनू ( राजस्थान )

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