राजस्थान में एक दरगाह ऐसी भी हैं जिसकी गुम्बद से शक्कर बरसती थी इसी कारण यह दरगाह शक्कर बार बाबा के नाम से भी जानी जाती हैं। शक्कर बार शाह अजमेर के सुफी संत ख्वाजा मोइनूदीन चिश्ती के समकालीन थे। तथा उन्हीं की तरह सिद्ध पुरुष थे। शक्कर बार शाह ने ख्वाजा साहब के 57 वर्ष बाद देह त्यागी थी। यहां श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व पर मेला भरता हैं। यह दरगाह है झुंझुनू जिले की पवित्र हाजीब शक्करबार शाह की दरगाह, जो कौमी एकता की जीवन्त मिसाल हैं।
इस दरगाह की सबसे बडी विशेषता हैं कि यहां सभी धर्मों के लोगों को अपनी अपनी पद्धति से पूजा अर्चना करने का अधिकार है । कौमी एकता की प्रतीक के रुप मे ही यहाँ प्राचीन काल से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रोज विशाल मेला भरता है जिसमे देश के विभिन्न हिस्सों से हिन्दुओं के साथ मुसलमान भी पूरी श्रद्धा से शामिल होते हैं। राजस्थान व हरियाणा मे तो शक्कर बार बाबा को लोक देवता के रुप मे पूजा जाता है।
शादी, विवाह, जन्म, मरण कोई भी कार्य हो बाबा को अवश्य याद किया जाता है इस क्षेत्र के लागो की गाय भैंसों के बच्चा जनने पर उसके दूध से जमे दही का प्रसाद पहले दरगाह पर चढ़ता हैं तभी पशु का दूध घर में इस्तेमाल होता है। हाजिब शक्कर बार साहब की दरगाह के परिसर में जाल का विशाल पेड़ हैं जिस पर जायरिन अपनी मन्नत के धागे बांधते हैं। मन्नत पूरी होने पर गांवों में रातीजगा होता है जिसमें महिलाएं बाबा के बखान के लोकगीत जकड़ी गाती हैं। दरगाह में बने संदल की मिट्टी को लोग श्रद्धा से अपने साथ ले जाते हैं जिन्हे खाके शिफा कहा जाता हैं। लोगों की यह मान्यता है कि इस मिट्टी को शरीर पर मलने से पागलपन दूर हो जाता हैं। दरगाह में ऐसे दृश्य देखे जा सकते हैं। हजरत के अस्ताने के समीप एक चांदी का दीपक हर वक्त जलता रहता हैं। इस चिराग का काजल बडा चमत्कारी माना जाता है । इसे लगाने से आंखों के रोग दूर होने का विश्वास हैं।
दरगाह के पीछे एक लम्बा चौडा तिबारा है जहां लोग सात दिन की चौकी भरकर वहीं रहते हैं नरहड़ दरगाह मे कोई सज्जादानसीन नही हैं। यहां के सभी खादिम अपना अपना फर्ज पूरा करते हैं। दरगाह मे बाबा के नाम पर प्रतिदिन बड़ी संख्या मे खत आते हैं जिनमें लोग अपनी अपनी समस्याओं का जिक्र कर मदद की अरदास करते हैं। दरगाह कमेटी के पूर्व सदर सिराजुल हसन फारुकी ने बताया कि जिस प्रकार ख्वाजा मोइनुदीन चिश्ती को ‘सूफियों का बादशाह ‘ कहा गया है। उसी प्रकार शक्कर बार शाह ‘बागड़ के धणी ‘ के नाम से प्रसिद्ध हैं। यहां के बारे में किवदंती है कि नरहड़ कभी प्राचीन जोड राजाओं की राजधानी था उस वक्त दिल्ली पर पठानों का शासन था एंव लोदी खां नामक पठान वहां का गर्वनर था। पठानो व राजपुतों के मध्य हुए युद्ध में पठान निरंतर परास्त होते गये एवं नरहड़ मे आकर उनके सैनिक व घोड़े थकते गए। एक रात दिव्यवाणी द्वारा पीर बाबा ने कहा कि तुम युद्ध कैसे जीत सकते हो। तुमने तो मेरी मजार पर अस्तबल बना रखा हैं।
उसी वक्त पठान सेना ने वहां से अस्तबल हटाया व विजय हासिल की। उसी वक्त से यहां उनका आस्ताना कायम हैं। इतना महत्तवपूर्ण स्थल होने के उपरांत भी राजस्थान वक्फ बोर्ड की उदासीनता के चलते यहां का समुचित विकाश नही हो पाया है इस कारण यहां आने वाले जायरीनो को परेशानी उठानी पडती हैं।
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