Friday, June 22, 2018

बावलिया बाबा जीवन चलचित्र ( Bawaliya Baba Story )


शेखावाटी के परमहंस के नाम से विख्यात गणेशनारायणजी बहुमुखी प्रतिमा के धनी होने के कारण कम उम्र में ही वेदों, व्याकरण, ज्योतिष में पर्याप्त ज्ञान प्राप्त कर लिया था। इनकी शादी शिक्षा पूर्ण होने से पहले हो गयी लेकिन शादी से थोड़े समय बाद ही इन्होंने गृहस्थ से विमुख होकर स्वयं को परमहंस की अवस्था में ढाल लिया तथा नीले वस्त्र धारण करने लगे। 

झुंझुनू जिले के बुगाला ग्राम में संबत 1903 में पौष बदी एकम को गुरुवार के दिन इनका खंडेलवाल ब्राह्मण घनश्यामदास के घर इनका जन्म हुआ। सम्वत् 1917 में मात्र चैदह वर्ष की उम्र में नवलगढ़ के चतुर्भुज की लड़की यशोदा के साथ इनका विवाह सम्पन्न हुआ। नवलगढ़ में ही रह रहे अमीर शाहजादा केशरशाह से इनकी फारसी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया। संबत 1947 में ये चिड़ावा नगरी आये। 

चिड़ावा आगमन के वक्त गणेशनारायण जी पूर्ण अघोरी रूप धारण कर चुके थे,, गणेशनारायणजी भगवती दुर्गा के परमभक्त थे तथा दुर्गामंत्र का हर वक्त जाप करते रहते थे। इनके मुंह से उस वक्त जो भी बात निकल जाती वह सत्य होती। यह चमत्कार देख कई लोग इनके परमभक्त बन गये, वहीं कई लोग इनसे डरने लगे क्योंकि ये अनिष्ट घटने वाली घटना का भी पूर्व संकेत कर देते थे, सच्चे साधक होने के उपरान्त भी दुनिया इन्हें पागल मानती थी। ये सदैव लोगों से दूर रहने का प्रयत्न करते थे। समाज में बहिष्कृत तथा शास्त्रों में निषिद्ध नीले रंग के वस्त्रों का ही गणेशनारायण जी प्रयोग करते थे। ये सिले हुये कपड़े नहीं पहनते थे। ये कभी श्मशान में लोट लगाते तो कभी पास के भगीनिये जोहड़े में बैठे रहते थे। भोजन करते समय कुत्ते और कौवे भी इनके साथ खाते थे। 


 जय हो परमहंस पंडित गणेश नारायण बावलिया बाबा जय हो निलवस्त्रधारी की जय हो बावलिया बाबा जय हो चिडावाधाम की ओम ड़ ड़ ड़ ड़

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